मुंगेली छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां होता है रावण का सम्मान ?..दशहरा मे मेला तो लगता हैं लेकिन रावण का दहन नहीं होता है..... देखिए खास खबर - CG RIGHT TIMES

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Friday, October 15, 2021

मुंगेली छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां होता है रावण का सम्मान ?..दशहरा मे मेला तो लगता हैं लेकिन रावण का दहन नहीं होता है..... देखिए खास खबर


मुंगेली छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां होता है रावण का सम्मान  ?..दशहरा मे मेला तो लगता हैं लेकिन रावण का दहन नहीं होता है..



राजा कुल देवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा कर पूरे क्षेत्र में खुशहाली की कामना करते हैं


मुंगेली ब्यूरो चीफ फलित जांगड़े की रिपोर्ट

मुंगेली -जिला मुख्यालय से महज दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत  कन्तेली  में 16वीं सदी से चली आ रही है एक अनोखी परंपरा है। यहां राजा की सवारी निकलती है लेकिन रावण का दहन नहीं होता है। राजा के दर्शन के लिए 44 गांवों से ग्रामीण एकत्रित होते हैं। राजा कुल देवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा कर पूरे क्षेत्र में खुशहाली की कामना करते हैं। 

छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गांव

जिस प्रकार केरल में मान्यता है कि दशहरे के दिन राजा बली अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए पाताललोक से बाहर आते हैं और प्रजा उन्हें सोनपत्ती देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती है। कुछ ऐसी ही परंपरा मुंगेली जिले के कन्तेली गांव में है, जो दशको से चली आ रही है। यह छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गांव है, जहां दशहरा में मेला तो लगता है लेकिन रावण का दहन नहीं होता है।

44 गांव के लोग होते है एकत्रित

16वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा दशहरे के दिन होता है। मेले में आस-पास के करीब 44 गांव के लोग शामिल होते है। यहां के राजा यशवंत सिंह के महल से एक राजा की सवारी निकलती है, जिसमें लोग शामिल होकर नाचते-गाते कुल देवी के मंदिर तक पहुंचते हैं। राजा यशवंत सिंह  के द्वारा कुल देवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा कर पूरे क्षेत्र की खुशहाली की कामना करते हैं। इतना ही नहीं इसके बाद राजमहल में एक सभा का आयोजन किया जाता हैं, जहां ग्रामीणों के द्वारा राजा को सोनपत्ती भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

इसका भी एक इतिहास है  कंतेली जमीदारी के प्रथम पुत्र गजराज सिंह के द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया था   स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व सन् 1944 में राजा पोखराज सिंह द्वितीय के मृत्यु के बाद तत्कालीन राज माता  श्रीमति पिनांक कुमारी देवी द्वारा स्वतंत्रता के बाद यशवंत कुमार सिंह राजा को दत्तक पुत्र बनाया 

गया था तब से मंदिर के देख रेख एवं  इनके द्वारा किया जा रहा था 30 वर्षों से यशवंत कुमार सिंह के संरक्षण में मां महामाया समिति संचालित था जो नवरात्रि पर्व में ज्योति कलश एवं पूजन आयोजन करते हैं अभी मंदिर का जीणोद्धार वर्तमान मंदिर टृस्ट के द्वारा सतत जारी है 

इस साल नही निकलेगा राजा की सवारी 

अशोक कुमार बड्डगैया ज्योतिषाचार्य   टृस्ट अध्यक्ष व

छोटे राजा घनश्याम सिंह के द्वारा बताया गया की हर वर्ष जो राजमहल से राजा की सवारी निकाली जाती थी वो इस साल नहीं  निकाला जायेगा क्योंकि जो राजा का पुत्र  था  स्व.गुनेंद कुमार सिंह थे उनका कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई हैं और राजमहल परिवार पुरे शोक में है इसी कारण इस साल राजा की सवारी नही निकाली जायेगी और जो मेला लगता हैंं ओ हमेशा की तरह इस साल भी मेला लगेगा हम राज परिवार क्षेत्र की जनता ओ के लिए हमेशा खुशहाली की कामना करते है और हमेशा करते रहेगे।


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